Sunday, November 1, 2015

मेरिट,न्यायपालिका और राष्ट्रहित.....

मेरिट,न्यायपालिका और राष्ट्रहित.....
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सुप्रीमकोर्ट का कहना है, उच्च शिक्षा में OBC/SC/ST को मिल रहे प्रतिनिधित्व को राष्ट्रहित में खत्म करना चाहिए।
बिलकुल सही है पर सुप्रीम कोर्ट में अतिक्रमण किये द्विज जज जिस मेरिट के नाम पर आरक्षण खत्म करवाने के लिए सरकार को निर्देश दे रही है, वही सुप्रीम कोर्ट शिक्षा की जिन तंग गलियों से मेरिट पैदा होती है।उस पर मौन साध लेती है।

अपने देश के बच्चों के पढ़ने के लिए 03 कम्पार्टमेंट है।
ICSE जिसमे जाने वाले बच्चों 
के बस, क्लास रूम, लैब फूली एयरकंडीशन होते है।
दूसरा होता है CBSE जहां 40 छात्रो पर 1शिक्षक होते है, और तीसरा स्टेट बोर्ड जहां देश के लगभग 80% आबादी के बच्चे जिनकी आय लगभग 5000 रूपये महीने है वे पढ़ते है।
SECC 2011 की रिपोर्ट कहती 74.5% आबादी 5000 रूपये व् 8.1% आबादी 10000 रूपये महीने पर गुजारा कर रही है। अब ये 83% लोग A.C. वाले ICSE और CBSE बोर्ड का खर्च तो उठा नही सकते। मन मारकर ये अपने बच्चे को 12 लाख शिक्षकों की कमी से जूझ रहे सरकारी स्कूलों में भेजते है । इस शिक्षा प्रणाली में छात्र और शिक्षको का अनुपात 140 : 1है।इन्ही सरकारी स्कुलो में निर्भर बच्चों के शैक्षणिक विकास को रोकने देश के नीति निर्धारकों ने RTE के माध्यम से उस पर लिपिकीय कार्य का बोझ इतना बढा दिया है वह टीचर चाह कर भी बच्चों को अपना बेस्ट नही दे सकता। वेतन समय पर नही मिलने के कारण आधा समय तो वेतन के लिए हड़ताल में निकल जाता है अब जो समय बचता है उसमे से ये शिक्षक बच्चों को कैसे पढ़ाये।
मतलब सुप्रीम कोर्ट चाह रही है, राष्ट्रहित में मेरिट की टक्कर 03 कम्पार्टमेंट ICSE,CBSE के सुव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली और जानबूझकर गर्त में ढकेले गए शिक्षकों की कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझते, सरकारी शिक्षा से निकले छात्रों के मध्य होना चाहिए?
 देश के 80% आबादी को पूरी प्लानिंग से जिस गर्त में ढकेला जा रहा है। पैसे वालो के लिए अलग शिक्षा प्रणाली, मध्यम वर्ग के लिए अलग प्रणाली व् गरीबो के लिए अलग प्रणाली को खत्म कर ""एक देश एक शिक्षा प्रणाली"" की दिशा में सुप्रींम कोर्ट क्यों कोई एक्शन नही लेती।ना सरकार लेती है।दोनों एक्शन क्यों नही लेती यह काफी रहस्य है।इस रहस्य को समझने के लिए आपको प्राचीन भारत की गुरुकुल प्रणाली समझनी होगी, जहां चौथे वर्ण का प्रवेश वर्जित था।
आपको मनु स्मृति पढ़नी होगी जो चौथे वर्ण वाले को शिक्षा देने से मना करती है। गुरुकुल और मनुस्मृति के नेक्सस को तोडा था संविधान ने और यही संविधान इनके निशाने पर है। अब संविधान तो खत्म नही कर सकते इसलिए जहाँ चौथे वर्ण के लोग ज्यादा पढ़ते है उस शिक्षा प्रणाली को बर्बाद करो, उनके बजट कम करो।वहां टीचरो के पद खाली रखो और वापस उन्हें उस दौर में पहुंचा दो जिस दौर में इनके पूर्वज रहते थे।जब इनका शैक्षणिक विकास नही होगा तो काहे की सामाजिक चेतना और काहे का संविधान?
 इस देश में 03 अलग अलग शिक्षा प्रणाली होना ही राष्ट्र के अहित में है क्योंकि आज से जब 15 -20 वर्षो बाद आने वाली पीढ़ी को पता चलेगा हमे जानबूझकर गर्त में ढकेला गया है उस दिन की कल्पना कर लीजिए क्या होगा देश में ????
 उम्मीद है देर सबेर न्यायपालिका इस दिशा में कदम उठायेगी क्योंकि पब्लिक जब कदम उठायेगी तो वह कदम बहुत भयानक होगा....????
Rampravesh Rajak
एक मित्र की वाल से....Education System in India

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